भारतीय पौराणिक कथाओं में देवताओं के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। एक तरफ प्रेम रचाने वाले कृष्ण हैं तो दूसरी तरफ मर्यादापुरुषोत्तम राम हैं। कृष्ण का आकर्षण कई महिलाओं के बीच बंटा हुआ है, संस्कारी राम अपनी पत्नी पर अपने कर्तव्य को प्राथमिकता दे सकते हैं लेकिन एक शिव ही हैं जिनकी गृहस्थी में कोई रुचि ना होने के बावजूद सती से बिछड़ने पर तांडव कर डालते हैं। भगवान शिव का संपूर्ण प्रेम केवल और केवल मां पार्वती के लिए है, किसी और की तरफ उनकी दृष्टि भी नहीं जाती है। चीते की खाल, जंगली फूलों से सजे, ध्यान में मग्न, भांग पीकर और वीणावादन करने वाले शिव जैसे शिव की कामना लड़कियां आज भी करती हैं। जब शिव सती को खो देते हैं तो वह पूरी सृष्टि का विनाश करने के लिए निकल पड़ते हैं.
पति और पत्नियों के लिए प्रेरणा हैं शिव–पार्वती
भगवान शिव मजबूत इच्छाशक्ति वाली महिलाओं के साथ बखूबी निर्वहन करते हैं। मां पार्वती को जो सही लगता हैं, वह वही करती हैं। वह कई बार पति शिव का विरोध भी करती हैं लेकिन भगवान शिव उनकी राय का सम्मान करते हैं। वे एक-दूसरे को प्यार करते हैं। दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए सम्मान है। आधुनिक पति और पत्नियां भी शिव-पार्वती के रिश्ते से काफी कुछ सीख सकते हैं।
शिव किसी राजा की तरह नहीं रहते हैं। उनके शरीर पर ना सोना है, ना चांदी, वह तो केवल चीते की खाल, रुद्राक्ष, सांप और भस्म धारण करते हैं। भगवान शिव के अंदर सांसारिकता का प्रपंच नहीं है। शिव भोले हैं और उन्हें सबसे ज्यादा आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। जब सभी ने मां काली को रोकने के लिए सामूहिक रूप से भगवान शिव का स्मरण किया। तब भगवान शिव ने भावनात्मक रास्ता चुना और उन्हें रोकने पहुंचे। भोलेनाथ मां काली के रास्ते में लेट गए। जब मां काली वहां पहुंची तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि भगवान शिव वहां लेटे हुए हैं और उन्होंने शिव की छाती पर पैर रख दिया। मां काली ने जैसे ही देखा कि भगवान शिव की छाती पर उनका पैर है, उनका गुस्सा शांत हो गया और वह पश्चाताप करने लगी। अगर कोई बाहरी रूप-रंग देखे तो कोई भी पिता अपनी बेटी का विवाह भोलेनाथ के साथ ना करना चाहे। लेकिन यही भगवान शिव की खासियत है। वह बाहर से जो दिखते हैं, अंदर से उससे बिल्कुल अलग हैं। वह सबसे बुद्धिमान, निश्छल और शांत देव हैं।